Thursday, April 11, 2013

शब्दों का पहिया

स्लोमोशन भी एक मूवमेंट ही है – जितनी सरल उतनी ही उसके स्पर्श में किसी एक्शन की छुअन है। एक्शन किसी दायरे में, दायरा वहीं है, ठहरा है, पूरा कहीं उठकर नहीं जा रहा। मगर ऐसा नहीं है कि वे मूव नहीं करता। नियमित कोई चीज़ रिले करती है।

तीव्र चमक अपने खत्म होते होते किसी स्पार्क की तरह उछल कर टकराने वाले पर पड़ रही है। टकराहट उतनी ही ताकत से चल पड़ती है। झटके के वार से धक्का खाता पहिया, खुद को बेलेंस करता हुआ, लुढ़कता और टहलता हुआ चीजों को धकेलने के तैयार है। पहले से तैयार जमीन उसके लिये किसी टेस्ट तरह है या बना रही है। तेजी और धीमे के बीच से होता हुआ वे ऊंचाई और निंचाई के साथ खेलता है। जैसे ही वे अपनी रफ्तार को हल्का करता तो सतह का खुर्दरापन उस छलांग मारते पहिये को, भी धक्का मार के आगे की ओर उछाल देता है। उससे वो रूकना नहीं, गिरता नहीं, थमता नहीं पर सतह पर बने रास्ते से टकराकर वे उनसे खुद को बना रहा है। खुद को उल्लास के लिये तैयार करता हुआ। सतह उसकी रफ्तार के साथ मे दूरी और पास का नया रास्ता बनाती चल रही है। राह ने उसके साथ किसी खेल को बनाया है। वे कहां जायेगा का अहसास मिसिंग है मगर कैसे जायेगा का अहसास तय मालुम होता है।

सब भागती जाती, अपने वज़न से अपनी रफ्तार बनाती हुई। हल्के पहिये वाला सतह से अपनी रफ्तार बना रहे हैं। गति उस तीव्र चमक को सतह से हवा की ओर ले जा रही है। सतह से हवा तक पहुँचते पहुँचते चमक अपने रंग बदल रही है और साथ ही साथ अपने फोर्स को भी। आहिस्ता आहिस्ता चमक सतह को छुती हुई किसी अंत की तलाश में मूवमेंट बना रही है। कुछ देर तक चमक लहराती हुई थमी रही है। अपना रंग बदला, आसपास के रंग पर छा गई, और फिर ऊंचाई को चूमने की कोशिश में किसी ना दिखने वाले गर्म अहसास से उड़ चली। कुछ दूरी पर उसके आने के लिये तैयार हो रहा है। एक सुखा गोला, उस गर्म अहसास को अपने मे ले लेने के लिये उत्सुक सा लगता है। उसके ऊंचाई पर खड़े रहने से उसने नीचे गिरना दाव किसी चैलेंज की भांति है। उसने उस गर्म अहसास से एक रंग ले लिया है। रंग ने जैसे उसे उड़ने का मौका दिया। घुमना, घूमना, घूमना जैसे वो नाच रहा है। हवा को अपनी भाप देता हुआ। हवा उसके पीछे पीछे चल रही है। लहराता रंग रोशनी से आसपास के नजारे को चमक तोहफे मे दे रहा है। कुछ जमीन उससे ये रंग चुरा रही है। जैसे कुछ लुटाया जा रहा है और जमीन उसे लूटने के लिये तत्पर है। 

कुछ देर तक ये डांस चलता रहा। तब वे खुलकर, बिखरकर, पीछे दिखती परछाई से गायब नहीं हो गया। जमीन ने उसके रंग को अपने शरीर पर ले लिया। जमीन भी उस भाप की गर्मी से कुछ देर जल रही है। किसी खतरनाक रूह की भांति वो गोला अपने परर फैलाता हुआ दिखा। जमीन मे कुछ ही देर मे जैसे उस भाप को ट्रांसफर कर दिया। आग लेने वाला कुछ देर तक उसे संभालने का अभिनय करता रहा। जमीन से उसे हिलने नहीं देता। पर जैसे ही परत आग से खुद को खोने लगती है तो हवा का झोंका उसे घुमाकर फैंक दे रहा है।

हवा से अपनी जलन को हल्का करता हुआ वे जमीन पर पड़े बिखरे तिनको से मिल गया। तिनको ने उसे ले लिया। तिनको ने अपने को फुलझड़ियों की तरह रंग बिखेरने दिया। कुछ देर सब कुछ उन्ही फुलझड़ियों मे खो गया। उसने आसपास को खुद मे डुबो लिया। आसपास गायब ही हो गया। धीरे धीरे करके जब उन रंगो की ताप ने जोर पकड़ा तो चीज़े दूर होने लगी। उसमे से कुछ लेकर भागने के लिये। जिसको जो चाहिये था उसे मिल गया। मगर अभी उसके लिये वो पूरा नहीं था। एक नाता भाप से तेजी का - बनने मे कुछ कमी थी। समय ने उसे रोके रखा। रोककर उसे भागने का मौके को सोचने के लिये। वो रूका, रूका रहा। किसी गुलेल की तरह उसे तैयार करने के लिये। उसका आसपास पूरी तरह उजाले मे था। रूद्र था। रोशनियों की चकम को संभाले हुये। जिसे भागना है वे तैयार है। उसे गर्मी महसूस नहीं हो रही। रूद्रता उसके पीछे है। उसतक आने के लिये अपना जोर पकड़ रही है। कोई एक लोह उसतक आने के लिये निकल चुकी थी। उसतक पहुँचने मे उसे वक़्त लगा। मगर वो बहुत तेज थी। भड़काव मे थी। उसे भी पीछे से किसी ने तेजी से मारा था। उस तक वो पहुँच चुकी थी। कुछ देर वो उसकी गर्मी की फड़फड़ाहट को झेलता रहा। खुद मे भरता रहा। वो उसे रोक नहीं पाया - खुद को भी नहीं। किसी डर से या किसी उड़ान से या किसी सक्रियेता से वे दौड़ चला। मगर उसे घबराने की कोई जरूरत नहीं थी। उसके डर को अपने अंदर समाने के लिये -

फोर्स को थमाने के लिये दीवारें जैसे तनी खड़ी थी। टकराहट की तेजी उसके पार भी निकल सकती थी। उसने उसे जाने नहीं दिया। खुद मे समा लिया। रोक लिया। उसकी चटकने की तेजी को रोक उसने चमक की सक्रियता को उसकी खासियत बना दिया। ना जाने कितनी देर वो उस सक्रियता को संभाले रखेगा!

लख्मी

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