घर में आज फिर से पन्नों ने बिखरना शुरु किया।
आज फिर से नाम उन्हीं कागजों में कहीं गुम गया॥
जिस ज़िन्दगी को इनमें ढूढंते हैं बस वही कहीं डूब जाती है।
और पन्नों के मुड़े-कुतरे निशानो में घूमती यादें अपनी ही धून बजाती हैं॥
आज फिर से घर के किसी कोने में यादों की बरसात है।
आज एक बार फिर मेरी उनसे पहली मुलाकात है॥
लख्मी
आज फिर से नाम उन्हीं कागजों में कहीं गुम गया॥
जिस ज़िन्दगी को इनमें ढूढंते हैं बस वही कहीं डूब जाती है।
और पन्नों के मुड़े-कुतरे निशानो में घूमती यादें अपनी ही धून बजाती हैं॥
आज फिर से घर के किसी कोने में यादों की बरसात है।
आज एक बार फिर मेरी उनसे पहली मुलाकात है॥
लख्मी
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