बचपन में एक खिलौना हम खुद से बनाते थे। जो मेले में मिलने वाले और खिलौनों के जैसे शौर करने का एक ज़रिया बनता था। इस खिलौने को बनाने की विधि बहुत ही आसान होती। असल में इसमें बेकार हो जाने वाली चीज़ को कैसे खिलौने की तरह देखा जा सकता है वे था। जिसे आज हम हँसकर कह देते हैं - कबाड़ से जुगाड़।
पहले एक गिलास लो और एक फूटा हुआ गुब्बारा। गिलास के मुँह पर वो फटा गुब्बारा लगा लो। उसे कसकर खींचकर नीचे की तरफ से टाइट रब्बड़ से बाँध लो और फिर एक पतली सींक मे धागा बाँधकर उसे गुब्बारे में छेद करके गिलास में अटका दो। उसके बाद धागे में थोड़ी - थोड़ी दूरी पर गिठा बाँध दो। अब जब उस धागे को खींचते है तो हर गाँठ पर हाथ पड़ते ही आवाज़ बाहर निकल जाती।
कितना आसान है ना इस आवाज़ से खेलना और कितना आसान है किसी चीज़ को खींचना। बस, यादों में भी कई ऐसी गांठे हैं जिन्हे खींचने पर आवाज़ होती है। अपनी यादों को कसकर पकड़कर रखने वाले लोग दूसरों की यादों को सुनने की तमन्ना रखते हैं और अपनी गांठो को बिना छेड़े ही कई शौरों में शामिल होना चाहते हैं।
बीती यादों की छोटे-छोटे कंटे - फटे टूकड़ों से बने चित्र खुद को पूरा करने की कोशिश करते हैं जिनमें घूमते हैं वे तमाम सवाल जो रिश्तों की बंदिशों से बने हैं। रोज़ सुबह ताज़ा होकर घर से निकलने वाला इंसान। अपने कल को भूलकर आज को जीता है। बीते हुए कल की सारी उलझने और मुलाकातें उसके आज को मुकम्मल बनाती हैं। जिसमें वो खुद को हिम्मत वाला समझने से भी नहीं चूकता।
क्या चाहिये आखिर में इंसान को या पैंतरे क्या है उसके? वक़्त के हर हादसे को खींचकर लम्बा करने की उसकी बेइंतिहा कोशिश उसके हर घटते पल में तत्पर रहती है। हर हादसे उसके आज के हर समय को मजबूत करते जाते हैं। उसके अनुभव को और गहरा करते जाते हैं। उसके मुँह से निकलने वाले हर लव्ज़ को और पुख़्ता करते जाते हैं। इन सभी क्रियाओं से जब वे वापस लौटता है तो आज को दोहराने की सारी क्रियाएँ - कल पौशाक पहनकर जीती हैं। इसी रिद्दम को वो जीवन कहता है।
कल और आज की दहलीज़ पर खड़ा इंसान यादों की हर गांठ पर हँसने को जीने का सबब मानकर चलता है और अचम्भे की बात तो ये है कि इसे वो लगातार और नियमित ढंग से करता है।
लख्मी
1 comment:
सार्थक आलेख!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
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