Friday, April 23, 2010

उजाला , अंधेरा और सभी वस्तूओ का स्पर्श ।

प्रकाश जहाँ होता है। उसके साथ छाँया भी जन्म लेती है। प्रकाश और छाँया जीवन के दो रूप जिनके अनुसार हम किसी अक्स की कल्पना करते हैं। वो अक्स जो हमारी रोजमर्रा को सुनने वाला, देखने वाला एक अवतार है। जो समय के प्रभाव से दिखता और खो जाता है। कोई उसे उभारने की कोशिश करता है। तो वो खुद भी कभी बाहर आ जाता है।

वो कौन सी आँख है जो इसे बना रही है? वो कौन से हाथ है जो इस अक्स को उठा रहे हैं। हम गढ़ने में है इस अक्स के सफ़र को अपने सफ़र में। कुछ हाथों से छूट ना जाये इस लिये सब बटोरने की इच्छा है।





ये अक्स के बीच में जो हमारा जीवन है वो खुद भी अपना चेहरा बनाना है। जिससे की समय के निरंतर बहती धाराओं में हम कहाँ है ये समझ सकें। चीजें, आवाजें, इंसान, माहौल, ढ़ाचाँ जिसमें किसी के होने और न होने के अहसास को ले सकें। रात और दिन के स्रोत अतिव्यापक समय का प्रभाव जिसमें रंग, चीजें, उजाला, अंधेरा सभी वस्तुओं का स्पर्श जो शरीर को कहीं ले जाता है। कभी सुनकर तो कभी देखने से कभी दोनों के गायब हो जाने के बाद भी वास्तविकता से और काल्पनिकता से। किसी चीज से दूरी और किसी चीज से नजदिकी का फांसला जो बीच को फर्क लाता है। वो किसी को दिखने का नजरिया ही एक आँख है और अपने अलावा दूसरे के नजरिये से भी देखने का तरीका है।





राकेश

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