एक शहर है
Sunday, April 25, 2010
दिवारें बोलती है ।
कभी चंचल हिरण तो कभी चमकाधडों की तरह उजाले से डर कर किन्ही सतहों से चिपके रहना।
दिवारें भी बोलती हैं। इन्हे भी हमारी तरह बदलाव में जीने की आदत है। दिवारें कभी अपनी जगह नहीं छोड़ती मगर वो किसी का झरोखा बनकर स्वप्न में ले जाती है।
राकेश
1 comment:
दिलीप
said...
bahut sahi baat kahi....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
April 25, 2010 at 11:15 AM
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1 comment:
bahut sahi baat kahi....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
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