Tuesday, January 5, 2010

याद - ग़ुरूर , भूल - शर्मिंदा

इंसान के याद रखने की क्षमता के अनुसार उसके भूल जाने की तीव्रता ज़्यादा ज़ोश में रहती है - करोंड़ो पल हैं

हमारी ज़िन्दगी में जो हर बार किसी ऐसी चमक के मोहताज़ बने रहते हैं जो उन्हे नींद से जगाये। अतीत में संभालकर रखा गया हर एक पल हर वक़्त कि ऐसी हलचल, मूवमेंट, तस्वीर, हादसा और बात का इंतजार करता है जिससे वे अनेकों समय की निबंध झुर्रियो के नीचे दबा हुआ वो पल तुरंत बाहर आकर अपना जलवा दिखाये।

यादों में जाने का सिलसिला क्या है? ये सफ़र कैसे तैयार होता है और हम इस सफ़र के लिए कैसे तैयार होते हैं? यादों में जाने का कोई निर्धारित समय नहीं होता। हर एक चीज़ हमें मीलों का सफ़र कराने की अगर ज़िद्द पकड़ले तो समझों यादों का मूल्य कुछ नहीं रह जाता। हर चीज़ एक पगडंडी तैयार करती जायेगी और आँखें मूंदकर चलने वाला इंसान वही सब देखता जायेगा जो वो कहीं रखकर भूल गया था।

कुछ यादों में दिखने वाले वाक्या ऐसे होते हैं जैसे इंसान किसी को उधार देकर भूल गया हो। वो जब अचानक से दर्शन देते हैं तो एक बार फिर से याद बनने लगती है।

हजारों पलों में से करोड़ों पल भुलाने वाला इंसान फिर भी खुद के अतीत का मसीहा मानकर जीता है। अपनर वर्तमान को धोखा देकर जीना ही इस सफ़र का सबसे बड़ा गाइड बनता है। हर शख़्स उन रास्तों का गाइड है जो किसी को भी अपने साथ ले जा सकते हैं।

यादें - कहकर काल्पनिकता को हकीकत का दावेदार बनाने का एक बहुत ही खूबसूरत रास्ता है।

लख्मी

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