हमारे बीच एक शख़्स आये। जो काफी दूर से आये थे। वे इस अपेक्षा से हमारे साथ दो दिन रहे कि वे अपने शहर जहाँ पर वे रहते हैं। वहाँ पर कई लोगों के साथ मिलकर उस इलाके के लिए हमेशा कुछ न कुछ सामुहिक कार्यक्रम करते हैं और उस सामुहिक कार्यक्रम में उनके साथ जुड़ने वाले कई लोग हर बार उनसे ये उम्मीद बाँध लेते हैं कि वे उनके साथ कोई ऐसा स्थान बनायेगें जिसमें वे खाली देखने वाले नहीं बल्कि करने वाले और कुछ अपना सहयोग देने वाले बने।
वे हमारे पास ये सवाल लेकर आये कि वे इस उम्मीद को कैसे ज़िन्दा रख सकते है और उसे क्या आहार दिया जाये? असल में वे एक ऐसी जगह बनाना चाहते हैं जिसमें हर कोई खुद से आये और कई अंजान और रिश्तों के बीच में खुद को नये सिरे से रख सकें। खुद को व्यक़्त कर सकें और साथ ही साथ खुद से कुछ रोज़ पूछ सके और उस पूछे गए को तलाश सकें।
वे हमारी जगह पर आकर ये कल्पना कर पाएँ। मगर उनके कुछ सवाल रहे जो पुराने हैं लेकिन अंदाज़ को खोलने को कहते हैं। ये कुछ ऐसे सवाल थे जिनको बहुत प्यार से सोचा जा सकता है और लगता था जैसे बहुत आसानी से इसका उत्तर दिया जा सकता है। जैसे -
> जब आप देखते हैं तो क्या देखते हैं जिसे आप सोचते हैं कि लिखें? और क्या बाँटने के लिए लिखे और क्या नहीं बाँटने के लिए लिखे?
> जब आप किसी चीज़ को छूते हैं तो उस छूने को कैसे लिखते हैं?
> जब आप महसूस करते हैं तो उस महसूस करने को कैसे लिखते हैं?
> जब आप सुनते हैं तो उस सुनने को कैसे लिखते हैं?
> घटना, कहानी, कल्पना और अनुभव क्या इसी में होता सारा लेखन?
> आप ज़रा अपना बताइये की आप कैसे लिखते हैं?(यानी अपने साथियों से हटकर आपकी नज़र, सोच, कल्पना और शब्द ज़ुदा क्यों है?)
> लिखे जाने के कुछ ऐसे टिप्स हैं जिनको लेकर लेखन शुरू किया जा सकता है?
> क्या बात होती है ऐसी जिसे आप मानते नहीं हो, जानते नहीं हो और समझना नहीं चाहते लेकिन फिर भी उसे लिखते हो?
> आप सब कुछ जानते हो लेकिन फिर भी खुद को समझाने के लिये लिखा जा सकता है, कैसे?
हमने उनके इन सवाल को बहुत हल्के स्वभाव से लेने की कोशिश की या कहिये की एक्टींग की। लेकिन जवाब देने के बाद में लगा की खाली जवाब देने से ये बातें समाप्त हो सकती है? जो खुद को एक बार फिर से दोहराने को कहे या मिटा के लिखने को कहे वे क्या हो सकती है?
आप क्या कहते हैं? ये सवाल मैं आपकी ओर फैंकता हूँ।
लख्मी
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