ज़िन्दगी बड़ी व्यस्त है पर फिर भी मैं को एक गैप चाहिये।
सब कुछ अपने पास है, मगर थोड़ी गुंजाइश चाहिये।
सारे रिश्ते अपने है लेकिन
कुछ तो पराया होना चाहिये।
है सब शान्त एक चुप्पी साधे हुए
मगर ज़रा सा शोर-शराबा चाहिये
बहुत दूर चला गया हूँ मैं
थोड़ा सा किसी का सहारा चाहिये।
है बन्द परले ये सोच के
के रात दिलनशीं है
सदियों से बन्द इन आँखों
थोड़ा उजाला चाहिये।
कैनवज भरा है रंगो से
तस्वीरें बोझल हो रही
ज़रा हटो नये रंगो को
थोड़ी जगह चाहिये
मन को रोक ले कोई
ऐसी सरहद नहीं
हाथों की खिचीं लकीरों को
अब ज़रा छुटकारा चाहिये।
है पस्त पड़ गे जीवन के दुख
टूट गई बेड़ियाँ गुलामी की
खूब जीए किनारों में
अब ज़रा तूफानों से जूझना चाहिये।
क्यो भूल गे गाँव के हवा पानी का स्वाद
जिस मिट्टी ने बनाया नवाब
वो ज़मी आज कुछ मांगती है
तू लोटेगा नहीं ये वो जानती है
मगर खुद को तो बेहलाने का
कोई बहाना चाहिये।
राकेश
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