Friday, January 9, 2009

एक अकेला शहर में


दिनॉक: 12-12-2008, समय: 11:40 बजे

इसमे उभरते जीवन की कल्पना मे बहते कुछ पल, समझने की कोशिश करे तो, अंजानपन को जीना क्या है? जो ज़िन्दगी में कोहरे की तरह आकर बस जाता है और हम उसे अपने आसपास का एक अनुमान समझकर जीने की कोशिश करते हैं। वो शायद आँखों की पकड़ में नहीं आ पाता। उसे छूने का अहसास बनाया जा सकता है जिसे अपनी याद्दाश्त का हिस्सा बना लिया जाये, वो एक क्षण ही है। जो आज को अपना सम्मान समझ लेता है।

राकेश

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