Tuesday, February 10, 2009

परछाइयाँ जिंदा है

तू मुझे करे ज़िंदा
मैं तूझे ज़िंदा करूं
तू मेरी परवाह करें
मैं तेरी परवाह करूं
मेरी दुनियाँ तेरे जलाये चरागों से रोशन है
फिर क्यों मैं जुगनूओं से दामन भरूं।

हाफ्ते जिस्म की रग-रग में तू शामिल है
तेरी दुनियाँ में मेरी भी कहीं तो वफ़ा शामिल है
तू सोच कि मैं मर गया हूँ
मुझे फिर से ज़िंदा होने की अदा मालूम है।

कत्ल से मैं नहीं डरता
डरते वो हैं जिन्हे कुछ नहीं मिलता
तू तो मेरे साथ है
मैं तो खुद को साथ लिए तेरी तलाश करता हूँ
इसलिए मौत को भी नराज करता हूँ।

मैं बचा लूंगा उस जमीन को जहाँ तेरी परछाइयाँ ज़िंदा है
क्या करूं ये भूमंडल घूम रहा है
ज़मी पर मैं हूँ मगर मेरा मन उड़ रहा है।

राकेश

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