हमारे नज़दीक से निकलते कुछ ऐसे चित्र जिनमे हम होकर भी गायब होते हैं। एक भीड़ जिसमे खो जाना ही ज़िन्दगी बन जाता है। ये वो राहें हैं जो हम से नहीं हम इन राहों पर चलकर बनते हैं।
एक और राह जो हमें खो देने को तैयार है।
दिनॉक:- 10-02-2009, समय:- दोपहर 2:30 बजे
लख्मी
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