Friday, May 8, 2009

महीने का वो 1500 रूपये

गली में आज बड़ा शोर मचा था। गली के बीच से होते हुए लोग निकल रहे थे। जगमगाती शाम ने अभी सूरमा लगाया था। इसलिये कोना-कोना सलेटी रंग से भर गया था। रोजाना की तरह गली-गली में संजती सँवरती लोगों की ये शामें आज कुछ ज़्यादा ही बेताब लग रही थी । गली के दोनों और दो मंजिला-तीन मंजिला मकानो से ढेरों रोशनियाँ बाहर झाँक रही थी ।

वो दरवाजा आज बन्द क्यों था जो रोजाना खुला रहता था। ये संदेह मुझे बैचेन कर रहा था। दरवाजे के बाहर जब कोई आँख लगा कर छेद में से अन्दर देखता तो अन्दर के कमरे का सारा नक्शा ही बदल जाता ।

"कौन है वहाँ" ये आवाज़ मन की स्थिरता को तोड़ देती। वो आवाज़ के साथ ही दरवाज़े की कुण्डी खोलकर बाहर देखने लगता पर उसे वहाँ कोई भी नज़र नहीं आता। जरा सा सहम कर वो चूपचाप वापस चला जाता। जो अभी आया वो राजेश था। जिसने सक-पकाकर दरवाजा खोला । फिर तीव्रता से नज़र घुमाकर वो दरवाजा बन्द कर गया।कई दिनों से वो हॉउस बॉय बनके प्रराईवेट नौकरी कर रहा है। वो अपनी बहन के यहाँ खूराकी यानी खाना-पिना रहना ये सब देकर रहता है । महीने का वो 1500 रूपये देता है। उसे कभी भी वक़्त नहीं मिलता की वो अकेले मे कोई फिल्म देख पाता ।

इसलिये कई मौको की तलाश में वो रोज़ाना चूक जाता था। उस रोज वो इस मौके का फायदा उठा रहा था । दरवाजे पर हुइ दस्तक से वो बाहर आकर देखने लगा। शायद उसका वहम था। राजेश इस बात को मज़ाक समझ कर दरवाजा बन्द कर के चला गया पर दोबारा किसी ने दरवाजे के बहार से छेद में से देखने की कोशिश की दरवाजे पर चल रही खुसर-फुसर को सुनकर राजेश फिर आ पहुँचा दरवाजा खोला- दाँय-बाय कोई नहीं था। बस, एक बिल्ली का बच्चा बैठा था। राजेश को पता लग गया की कोई जान गया है की अन्दर क्या हो रहा है । मगर मजबूर था । अपने साथ किसी और को अन्दर बुला भी नहीं सकता था।

क्योंकि गली के सारे लड़के उस के अच्छे दोस्त थे पर अच्छे दोस्तों से भी वो आज बीएफ फिल्म देख रहा था। जब सब को पता था की बीएफ फिल्में क्या है और कहाँ से मिलती है? तो भी सब अपने बीच ये बात खुलने ही नहीं देते की सब जानते हैं की बीएफ फिल्म क्या होती है?

नज़रों से कैसे छुप जाता है ये अदा ही राजेश को अब तक बचाए थी । सब की आँखों में एक निहायती शरीफ बनके रहने के बाद भी इन फिल्मों का मज़ा लेता था। ये फिल्म मे उस की थकान उतार देती थी । जिनके नीचे बैठकर वो अपने को हल्का महसूस करता था। काश वो ये समझ पाता की वो किस दिशा में जा रहा है । पर उस की ये नसमझी ही तो उसे इस शहर मे काम करने की थकावट से मुक्त कर देती थी। जब वो दफ्तर से छूट कर घर आ जाता तो मारे थकावट के बदन टूट जाता। घर में टीवी के कान मरोड़ ने वाले और भी दर्शक होते थे। इसलिये उसे अवसर ही नहीं मिलता था। कि वो आराम पा सकें। इसलिये आज का मौका वो हाथों से जाने नहीं देना चाहता था।

बाहर आकर वो मुस्कराया फिर दरवाज़े को बन्द कर के चला गया। हाथ में रिर्मोट लेकर वो फिर अन्दर ही बैठ गया ।वहाँ तो अग्रेजी फिल्म चल रही थी । उस जगह रोज़ ऐसा नहीं होता था बहुत दिनों से राजेश फिल्म देखने का विचार बना रहा था पर एक अच्छे मौके की उसे तलाश था। टीवी का वॉलियम कम था ताकी बाहर आवाज न जा सके । लेकिन ऐसा नहीं था की सुनना मूश्किल लग रहा हो । कम ही सही पर कुछ तो था जो फिल्म के सीन के साथ में चलती आवाज़ से समझ में आ रहा था।

वो बीएफ फिल्म देख रहे हैं। दरवाज़े पर झूलकर गली के लड़के फिल्म पर आँख लगाये खडे थे। फ्रीज़ के ऊपर ही टीवी और उस पर सीडी प्लेयर रखा था जिसके ठीक सामने राजेश बैठा रिंर्मोट से फिल्म को कभी रोकता तो कभी चलाता। वो कमरे में अकेला नहीं था उस का साथी जो उस के साथ वहाँ बैठा था। दोनों के चेहरे पर अजीब सा भाव दिख रहा था । जो न पूरा डर था न ही खुशी मान लिजिये की वो इन दोनों का कॉमिनेशन था।

कोई आ न जाये वरना सारा भाँडा फूट जायेगा। इस बेचैनी में फिल्म का असली मज़ा भी जा रहा था। बार- बार कोई परेशान कर रहा था। इस बार कोई और नहीं मैं ही था जो दरवाजे पर खड़ा था।

"क्या हुआ राजेश?” दरवाजे के खुलते ही मैनें सवाल किया । राजेश ने दाँय-बाय देखा और मुझे अन्दर बुला कर लाया । मैनें कमरे की गर्मी को महसूस कर के फिर पूछा, “ बाहर दरवाजे पर बडी लाईन लगी थी क्या हुआ?”

वो बोला, "कुछ नहीं हम लोग तो अपना मनोरंजन कर रहे थे।"

तब मुझे लगा की कोई तो बात है। सब कुछ जानने के बाद राजेश के अन्दर का वो शख़्स जो अब तक चाँद की तरह बादलों में छूपा था। वो नज़र आ गया पर घर के सारे लोगों से उस ने ये बातें न बताई थी। राजेश को उस वक्त मेरी हमदर्दी की जरूरत थी मैं उसे देख कर मुस्कूराए जा रहा था। मुझे देख कर पहले ही उसने सारी वीसीडी दूबका दी थी। मैं जान गया था मगर फिर भी अन्जान बना रहा।

राकेश

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