Tuesday, May 19, 2009

ये सब कहाँ है?

कुछ बनाते, लिखते व सुनते कहीं छुट जाते है. उनको दोबारा कैसे दोहराया जाये?

बीती कहानियों में दोहराए गए लोग और उन्ही कहानियों में सुनाये गए लोग कहाँ मौजूद है? क्या उनका कोई ठिकाना है? या वो खाली बनाये जाते है किसी माहोल को रचने व बनाने के लिए? हम कितनी कहानियों में न जाने कितने लोगों के बीच में रह चुकें है? ये बताना शायद मुस्किल होगा. क्या वे लोग खाली उदाहरण बनकर आते है या फिर वो सुनाने वाले के अंदर के कुछ हिस्से होते है? ये बताना हमारे लिए एक बेहद ठोश रूप में आता है जिससे हम अक्सर किनारा कर लेते है.

कई सवाल और न जाने कितने ऐसे चेहरे जिनको हम खुद में लिए घूमते है और ये सोचते है की जो भी हमारे सामने बनता जा रहा है वो असल में एक चित्र है जिससे हमारा कोई रिश्ता नहीं है. ये मानकर अगर हम चलना भी चाहें तो कोई बुरी बात नहीं होगी.

मेरे सामने गुजरने वाला हर लम्हा किसी याद से कम नहीं है. लेकिन मैं उसे दोहराने से कभी-कभी चूक जाता हूँ इसलिए नहीं की मैं उसे खुद में उतार नहीं सकता या उसे अपने माहोल में बयां नहीं कर सकता. ऐसा नहीं है. मगर क्या हम हर लम्हा और हर बीती दुनिया के पलो को बयां कर सकते है? लेकिन क्या हमे पता है की बीते और गुज़रे लम्हों में क्या-क्या समाया व छुपा होता है?

उन लोगों और कहानियों को हम कैसे सोचें जो हमे सुना दी गई है. जिनमे हम नहीं है और जिनकी दुनिया से हम वाकिफ भी नहीं है. उसे दोहराने और कह पाने की ताकत हम कैसे जुटा सकते है? कितने तरह के लोगों से हम इन्ही कहानियों के जरिये मिल चुके है?


लखमी

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