Monday, May 18, 2009

कुछ ऐसी पहेलियाँ जो अद्धखुली घूमती हैं...



कुछ अद्धबनी शक्लों में पुर्ण चेहरे भी होते हैं। जिन्हे किसी की तलाश होती है और वो भी अपने होने के मक्सद को खोज़ करते-करते कहीं ठहर जाते हैं।




हमारे पीछे और आगे कौन है? ये किसी को क्या पता! मगर अपने बीच कई सूरतों का संगम होता है। हर चीज़ बराबर है फिर भी सबकी अपनी -अपनी सीधी, टेडी, तीरछी पहचान सामने आती है।





कौन है वो जो अकेला नहीं कौन है? वो सबके बीच मे नहीं है! इंसान खुदगर्ज़ है जो अपनी ही कल्पना की दस्तकों को भूलकर सिर्फ़ यथार्थ के कुण्ड में डुबकी मारता है।





कोई जाने या न जाने फेरियाँ बाज़ारो में मज़ा लुटाती। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं फिर भी माँगने का सिल-सिला चलता रहता है। ये रिश्ता ही एक-दूसरे को करीब रखता है।





वो भूख जो इंसान को शुरू से ही सता रही है। वो कभी मिटती नहीं, मिट जाते हैं उसे पाने वाले और छोड़ जाते हैं सौगातों के रूप में अपनी धरोहरें, मिसाले, चिन्हे और पहेलियाँ। जिन्हे समझने की जिज्ञासा लिए आने वाला कल आकाशवाणियाँ करता जाता है।





खुद से भटकती सोच जब किसी पर उतारू होती है तो सही-गलत का फ़र्क किए बिना वो उस रूप में आ जाती हैं। जिसको आसानी से मन्जूर करना सम्भव नहीं। वो तमाशा बन जाती है और दूसरों के हँसते-मुस्कराते चेहरों में रूपान्तरण होकर छलक जाती है। वो रोके नहीं रुकता। ऐसे ही मज़मों का मंजर बना रहे तो ज़िन्दगी हसीन हो जाए।





राकेश

2 comments:

DHUA said...

Acha laga. Apka graphics ek asthir duniya ko sandesh deta hai. Yeh baath apke videos mein nagih dikh pa raha hai. Graphic works mein ek apka khas duniya ubhar raha hai. Aage aur dekhna chahenge. salaam kalool

Ek Shehr Hai said...

hi Dhua aap ne jo kaha wo bahut interting hai main is ko apne vedio me lane ki koshshi jaror karonga.
ghraphic mai aap jo dekh kar mojhe indicaters bata rahe hai .unko or darshana chahonga.thanks