महफ़िलो का दौर न रुका है न कभी रुकेगा,
बस, मंजिले मिलती रहेगी और कारवाँ बड़ता रहेगा।
हम अपने रियाज़ से किसी न किसी हुनर और कला को जिन्दा रखेगें,
और इम्तिहान-ए-ज़िन्दगी का सिलसिला यूँही चलता रहेगा।
चाहते ना चाहते हम और आप ऐसी ही महफ़िलों मे शामिल होते हैं, जहाँ मन के उड़न ख़टोले पर सवार होकर कंहकारों की जुँबा से उनकी बैचेनियाँ बयाँ होती हैं। जिसमें अपने आसपास ही से अपनी खुद की बनाई दुनिया को कविताओं, शायरियों, गीतों और किस्से-कहानियों की फुलझड़ियों को सजाने वाले शख़्सो को जानना होता है। वे अपने रियाज़ मे अपनी ज़िन्दगानी बताते हैं। उनकी ख़ासियत, उनकी पहचान का सबब है यानि वज़ह है। ये वे लोग हैं जो अपनी पारिवारिक ज़िन्दगी की सभी तरह कि जिम्मेदारियों को निभाते हैं। बर्सते इसके साथ-साथ दूसरों के लिए सौगातों की नित नई ईमारतें तैयार कर रहे हैं और अपने सच्चे स्वरूप को तलाश रहे हैं। अपनी लेखनी से दुनिया को तरह-तरह से देखने के नज़रिये बना रहे हैं। समाज की हर ज़रूरत और हर नौकरी पैशेवर शख़्स होने पर भी इनकी दुनिया का कौना बहुत बड़ा है। जहाँ ये अपने आप को मुक़्त समझते हैं और अपने ऊपर परिस्थितियों को हावी नहीं होने देते। ज़िन्दगी के कई मौड़ो, रास्तों का सफ़र तय करते हुए।
वक़्त की तेज रफ़्तार मे ये रचनाकार चंद लम्हों के अफ़सानो की चादर बुन ही लेते हैं। ये अपनी सोच और समझ के फ्रैमो से झांककर दुनिया का चित्रण करते हैं। महफ़िले इन कलाकारों का मन्च नहीं होती, ये महफ़िलों को सांझा माहौल कहते हैं और अपनी शैलियों से एक-दूसरे पर खुद को प्रकट करते हैं। इन महफ़िलों के बनने का कोई निर्धारित समय नहीं होता। बस, सुनाने की इच्छाए जगती है और ठिकाने बनने लगते हैं। शहर की कई जगहों पर ये कौने नज़र आते हैं। जो अपने बौद्धिक रूप से अपना आश़ियाना बनाये हुए हैं। कभी गली के कौनो मे, बस की सीटों मे, सड़क के किनारों मे और किसी की छत पर ना जाने कितने ऐसे माहौल सजते हैं।
वो कमरा जिसके दरवाजे पर किसी के खट-खटाने की ज़रूरत नहीं, जिसकी चौखट है लेकिन फैलाव की हद नहीं है। यहाँ अपने बौद्धिक ज़िन्दगी के पहलुओ को समझने का मन्जर बनाया जाता है। जिसमे अपना रियाज़, कलायें और सोच-विचारों की गहराइओ को समझने का प्रयास किया जाता है। हर व्यक़्ति ज़िन्दगी मे एक इवेन्ट बनाता है। अपने जुस्तजू मे मश्गुल रहने वाले शख़्सों मे घुलने-मिलने के लिए।
ऐसा ही एक समा, जिसमे वक़्त की कोई कमी नहीं थी और ना ही किसी काम की चिंता। सभी अपने मे घुले थे। दोपहर का वक़्त भी एक रंगीन रात का अहसास दिला रहा था। महफ़िल मे बैठे सुनने वालो के मुँह से "वाह-वाह" के स्वर निकलते तो माहौल मे गति आने लगती। एक-दूसरे की रचनाओं को बारी-बारी सुनकर मजा आने लगता। ऐसी ही अपनी खूबसूरत और मन पर जीत पा लेने वाली रचनाओं को लोग सुनाये जा रहे थे और शायरी की पंक्तियों मे खोते जा रहे थे। ऐसा लगता जैसे की लख़नवी मुशायरों का मन्जर उभर पड़ा हो। वो रात मे शमाओं को रोशन करने वालो की किवाड़ो पर आवाजों से दस्तक देने लगे और पल भर मे गीत या कोई शायरी ख़त्म होते ही "वाह-वाह क्या बात है, क्या बात है। बहुत बड़िया-बहुत बड़िया" माहौल के शौर मे जाने कहीं खो से जाते। कोई इश्क मे डूब कर ऊपर ना आने का मजा बयाँ करता तो कोई दर्दे-इश्क की गलियों से दिलरूबा की बे-वफाई को तक्दीर का फसाना बताता।
उस महफ़िल के जादूगर जिनको शहर एक झटके मे कहीं भूल जाता है। ना जाने कितने लोग बिना किसी की यादों मे ही ज़िन्दा रहते हैं। शहर मे वो जाने जाते है तो बस, उनके काम व रिश्तों से। उनका क्या परिचय बना या बता सकता हैं?
महेश कुमार, उम्र 35 साल वो दिल्ली के बत्रा अस्पताल मे केन्टीन का काम सम्भालते हैं।
विजय कुमार, उम्र 34 साल वे दिल्ली की सड़कों पर ऑटो चलाते हैं।
सुरेन्दर सर, उम्र 32 साल वे दक्षिण पुरी मे एक ट्यूशन टीचर हैं।
प्रमोद राज, उम्र 34 साल दक्षिण पुरी मे एक स्टेशनरी चलाते हैं।
सुभाष कुमार, उम्र 23 साल, दक्षिण पुरी मे सब्जी का काम है इनका, कभी मन कर जाता है तो फेरी लगाने के लिए भी निकल पड़ते हैं ।
सोहन पाल, उम्र 36 साल ये दिल्ली के बत्रा हॉस्पीटल मे किसी अन्य डिपाटमेन्ट मे काम करते हैं।
ये सभी अपने काम के ज़रिये दिल्ली जैसे भागते-दौड़ते शहर मे कुछ पहचान हासिल कर पाये हैं। लेकिन क्या ये जो इन छोटी-छोटी महफ़िलो मे दिखते हैं वो शहर के किसी कौने मे अपना रूप बनाये हैं? हम चाह कर भी उस पहचान व परिचय को नहीं उभार पाते हैं जो कोई शख़्स अपनी कला व रियाज़ से बनाता है। इनके रियाज़ मे कई लोग बसे हैं। ये लोग अपनी इच्छाओं व कल्पनाओं को सुनाने के लिए कई पाठकों की उम्मीदें लेकर जीते हैं।
अर्ज है, दर्दे इश्क की दवा लादे कोई,
हमें भी दो घूंट पिलादे कोई।
ज़िन्दगी मे दर्द-जख़्म तो बहुत मिले,
ज़रा मौत को समाने लादे कोई।
दक्षिण पुरी, पहली महफ़िल, दिमाँक- 27 जून 2008, समय- शाम के 4:00 बजे
राकेश
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