Saturday, November 8, 2008

एक शब्द- कई कहानियाँ

एक शब्द अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है
शब्दों के आलोक मे, कोई नाज़ुक सपना पलता है।

शब्दों के हैं रूप निराले,
अपने आगोश़ मे कई तस्वीरें पाले,
शब्दों के दुनिया मे माना कंगाल बहुत है
फिर भी आसपास शब्दों के जाल बहुत हैं।

हर उमंग से, ये कोई भाव लिए निकलता है
हर शब्द अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है।

शब्दों का जगह से रिश्ता है अनोखा
ज़िन्दगियों के अवशेषों मे बनाता है झरोखा
कल्पनाए तड़पती है आकार पाने को
शब्दों की बाहों मे न्यौछावर हो जाने को

हर शब्द के बगल से एक नया ही मोड़ गुजरता है
हर शब्द अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है।

शब्दों की शब्दों से होड़ बहुत है
कहीं शब्दों के शब्दों से तोड़ बहुत है
फिर भी शब्दों को गूथ रहा है कोई,
खींच-खींचकर सूत रहा है कोई
शब्दों की आवाज पर लग हैं ताले,
शब्द हो गए हैं अब बोलियों के हवाले।

शब्द बे-ज़ुबान है मगर फिर भी चीखता-चिल्लाता है
हर शब्द अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है।

कहीं गीत, कहीं कविता तो कहीं ज़िन्दगानी है शब्द
कहीं तोहफा, कहीं शौगात तो कहीं निशानी है शब्द
तारीफों के पुलों मे बुने जाते हैं शब्द
दोस्तों की टोलियों मे सुने जाते हैं शब्द

दिलो से बाहर आने को मचलता है शब्द
अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है शब्द

मगर अब, बदलाव की आग मे झौंक दिया है शब्द
नई तस्वीरें जन्म देने को रोक दिया है शब्द
शब्द तो न्यौता था ये पुकार कबसे हो गया!
कहीं टकराव, कहीं ललकार ये तलवार कब से हो गया!

शब्द- शब्द से पूछ रहा है सवाल दोस्तों
शब्दों को हो गया है हाल-बे-हाल दोस्तों

अब भी किसी मे रूपातरण होने को तरसता है शब्द
क्योंकि, अपने साथ कई कहानियाँ लिए चलता है शब्द।


लख़्मी

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