Saturday, April 4, 2009

टीवी और बेटियों का जादू

आज के बदलते समय ने इतिहास को नये सिरे से कहना आरम्भ कर दिया है। पश्चिम सभ्यता के मुकाबले औरत को हमारे यहाँ भी ऊँचा दर्जा दिया जाने लगा है। जन्म से ही जिसकी ज़िन्दगी ख़तरों से, अत्याचारों से जुझती रही फिर भी कभी मुँह से ज़ुँबान न निकाली। आज देश के कठोर निर्णयनों-कानून ने वो पल्टिमारी की सत्ता को भी इस मामले मे गम्भीरता से सोचना पड़ गया।

जागरूकता की आग से वो लपटे उठी की इसने सबको अपने साथ ले लिया ।
अब हर जगह महिलाओं को पहला दर्जा दिया जाता है हर महकमे मे। ये ज़्यादा तर सम्भव हुआ है टीवी चैनलो के और कई परिवारों के लाडले कार्यक्रमों से। धीरे-धीरे महिलाओं और बच्चियों पर आधारी उपन्नयासो से जो लोगों के दिलों में जगह बनी है। वो जगह आज दूसरे क्षेत्रो पर चढ़ाई करने को अमादा है। बात है की पहले सास-बहु, जेठानी-देवरानी की डिमांड होती थी। आज लोगों की प्यारी राजदूलारी बेटियों ने हर चेहरे पर जादू कर दिया है।

कुकू नारण के परिवार मे किसी चीज की कमी नहीं थी बस, वो मालिक से बेटी की दुआ माँगते थे। उन्हे अपने घर मे जो खुशियाँ बिखेर दे उस बेटी की चाहत थी। बेटी के आते ही घर जैसे स्वर्ग बन गया। हर तरक्की कदम चूमने लगी। जैसे पहले लोग बेटो को लेकर रियेक्ट करते थे वही जगह अब बेटियों ने ले ली है। बेटा गोन बेटी कमींग।

सो अब हर जगह दिलो-दिमाग पर बेटियों का जादू बोल रहा है और खिताब सीधा टीवी को जाता है। आज अगर कोई ग्रहणी घर की कल्पना करती है तो वो सबसे पहले कहती है "एक घर होगा, उसमे एक बड़ा सा टीवी होगा" अब आप ही बताइये की घर में टीवी की जो हैसियत है वो किसी और चीज़ की नहीं है। सदियो से इंसान एक-दूसरे के गाँव-गाँव जाकर सूचना और प्रचार का साधन ख़ुद ही बनते थे जिससे वो लोगों को पुरी तरह सें जागरूप करने में असमर्थ रहते थे। वक़्त ने वो कर दिखाया जो इतिहात मे कभी न हुआ अगर हुआ तो उस जोश ने दम तोड़ दिया।आज ज़िन्दगी इतनी तेज और कुशल हो गई है की जीनें का ढ़ंग ही बदल गया है। लोगों के दिलों में टीवी राज कर रहा है और उस से जुड़े धारावाहिक जो रोज़ की ज़िन्दगी में तरह-तरह के चेहरों के साथ रिश्तों के गठबंधन कर रहे हैं।

दिलो पर छा जाने वाले नाटकों में आज की लिस्ट में सबसे ऊपर का नाम है। "सब की लाडली बेबो।" बेबो के बाद फिर दूसरी बेटियो का नाम भी है। जो नाम टीवी की जान है। इस मे कई चैनलों की साझेदारी है। स्टार प्लस, सोनी, कलर्स, एनडीटीवी वगेहरा। जो बेटियों के तरह तरह के पात्रों से सम्बधित है जो पारिवारिक ढ़ाँचो को नये सिरे से दिखाते हैं। हमारे यहाँ भी कुछ ऐसी ही घटनाये जन्म लेने लगी हैं। बेटो की जगह अब बेटियों ने माँ-बाप का बोझ उठाने की ठान ली है। कहीं आत्मनिर्भता की कहानी है तो कही बेटियों की ममता के आगे सब घुटने टेक देते हैं। कहीं बेटिया माँ-बाप का दुख दूर करने के प्रयास कर रही हैं तो कहीं ज़िन्दगी के हर मोड़ पर समाज से लड़ रही हैं। कहा जा रहा है की अब वो दिन दूर नहीं जब लड़कियाँ भी लड़को की तरह अपने परीवार की तरह सारी जिम्मेंदारियों को निभायेगीं और ये कोई हैरत की बात नहीं। ऐसी कई लडकियाँ है जो ये अपनी भूमिका बखूबी निभाती आ रही हैं। इतिसाह गवाह रहा है की महिलाओ ने कैसे वक़्त से लोहा लिया है।

टीवी ने लोगों की ज़िन्दगी को सच से रू-ब-रू कराने की मुहीम छेड़ दी है। इस के जोहर के कारण हर मानवता पर ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। सब के मनों में एक-दूसरे के लिए प्रेम भावना को लाया जा रहा है। वो मंच तैयार हो रहा है जिसपर सबका अपना ख़ास क़िरदार है और हर क़िरदार दूसरे का पहलू बना है।


राकेश

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