परछाई कभी परछाई नहीं होती,
वो होती है कोई धूंधला सा आकार।
समय कभी समय नहीं होता,
वो होता है किसी पल का ठहराव या बहाव।
दिन का कोई भी वक़्त महज़ वक़्त ही नहीं होता.
वो होता है शायद किसी तरफ का इशारा।
क्या होने वाला है?, क्या हो गया है? असल में ये कुछ नहीं होता,
वो तो होता है किसी आने वाले कल का पूर्वाभ्यास।
याद असल में याद नहीं होती,
वो होती है किन्ही धूंधली परतों के दरवाजें।
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खो जाना मिल जाने पर निर्भर है और मिल जाना खो जाने की लपेट में।
कहीं खो गया है कोई या मिल जाने के डर में है?
लख्मी
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