Sunday, March 8, 2009
पुरानी दिल्ली का मशहूर पान भंडार
दिनॉक- 07-03-2009, समय- रात के 8:00 बजे
पुरानी दिल्ली को हम कई ख़ासियतों से जानते व पहचानते हैं। वहाँ के लोकगीत, वहाँ का माहौल, वहाँ का खाना, वहाँ की कमाई के ठिकाने, वहाँ की ज़ुबान और वहाँ के यातायात के साधन। इन सभी ख़ासियतों में कुछ ऐसा भी है जो छुपा सा रहता है। इतनी भीड़ के होने के बावज़ूद भी लोग एक-दूसरे के बीच मे से अपने लिए जगह खोज़ निकलाते हैं। काँधों से काँधे टकराते हुए लोग एक-दूसरे पर नज़र मारते हुए निकलते हैं।
जामा मस्ज़िद नम्बर एक गेट। ये हमेशा भरा दिखता है। इसके सामने की मार्किट से ना जाने कितनी तरह की आवाज़े हमेशा चलती रहती हैं। इतनी आवाज़ों के बीच मे भी लोग उस आवाज़ को सुन लेते हैं जिसे वे सुनना चाहते हैं। चितलीकबर बाज़ार से निकलने वाले लोग बहुत जल्दी मे दिखते हैं। एक-दूसरे से टकराने की तो जैसे सभी को आदत सी हो गई है। बस, टकराते हैं एक-दूसरे की नज़रों मे देखते हैं और फिर निकल जाते हैं। ये मिलना यहाँ की एक ऐसी ख़ासियत है जिसे याद में रखा जाता है और इस मिलन को ख़ुद मे दोहराया जाता है।
ज़ामा मस्ज़िद के एक नम्बर गेट के सामने लगी एक छोटी सी पान की दुकान जिसे यहाँ के हुए कई साल हो गए हैं। वे अगर ख़ुद अपने पिछले सालों को बतलाये तो वे कहते हैं, “हम तो तब के हैं यहाँ के जब यहाँ पर बस, दो चार ही दुकानें हुआ करती थी।"
बस, यही कहकर वो यहाँ के हो जाते हैं। कई बातों मे वे पअने आसपास लगी दुकानों का ज़िक्र करते वक़्त उनके भी पिछले सालों को दोहराने को तैयार हो जाते हैं। साथ वाली दुकान को वो अपना हमनवाज़ कहते हैं।
ज़्यादातर इस दुकान पर बड़े मियाँ बैठे नज़र आते हैं। उनके पान बनाने का अंदाज़ ही कुछ गज़ब है। वे जब पान बनाते हैं तो किसी की भी तरफ देखने मे उन्हे मज़ा नहीं आता। बस, जिसके नाम का पान बन रहा है उसके मुँह की तरफ देखते हुए वे पान में चीज़े डालते रहते हैं। कभी-कभी तो वे इतने खुशमिज़ाज़ हो जाते हैं कि पान की ख़ासियते बताते हुए वे कई और लोगों के बारे मे भी बोलने लगते हैं। जो भी उनकी दुकान पर पान खाने के लिए आता है। उसे वे अपने सबसे पसंदीदा पान खाने की सलाह दे डालते हैं। उनकी बोली मे, उनके पान की तरह ही मिठास भरी होती है।
वे पान को बनाने का मतलब कुछ और ही कहते हैं, “ये पान ही थोड़ी है मियाँ, ये मिठास है, याद है यहाँ की। जा रहे हो तो कुछ तो लेकर जाओ। चीज़ें ले जाकर क्या करोगें। थोड़ी लाली लेकर जाओ यहाँ की तब बात बने।"
चेहरे मे देखते हुए कहते है, “ये उस खूबसूरत सपने की तरह से बना देगें की मियाँ की रात मे जब आँख बन्द करोगें तो ये लाली ही याद आयेगी। जो भी देखेगी मग मिटेगी आप पर।"
पान मे चीज़ें डालते हुए कहते हैं, “पान में खाली चीज़ें ही नहीं डलती मियाँ, ये तो थाल की तरह से तैयार करते हैं हम आपके लिए। समझलो की कोई परदेशी आपको अपनी यादें भेंट मे दे रहा है।"
उनके बोल और उनके अंदाज़, उनको कभी न भूलने की सौगात थमा देता है। उनके पास दोबारा जाने को कहता है। ये ख़ास ख़ासियत है जो दिल मे उतरी है।
पान बनाना क्या है हमारे लिए? ये हम सोचकर भी अंजान बने रहते हैं। उनके लिए क्या है ये उनसे सुनते हैं। मगर ये सजाना, बनाना और परोसना तीनों के मेल से बना। एक ख़ास अवसर बन जाता है।
लख्मी
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