दिनाँक- 13/03/2009, जगह- दक्षिणपुरी मार्किट, समय- दोपहर11:30 बजे
चेहरों के पीछे भी चेहरे होते हैं बस, उन्हे पहचानने की नज़र तलाशनी और बनानी होती है। एक गुमश़ुदा व्यक़्ति ख़ुद को तलाश रहा है। इसलिए उसे देखकर लोग कहते हैं ये लापता है। मगर उसके तलाशने को कोई नहीं जानता। सब उसके गुम होने को देखते है।
हमारे बीच आइने बहुत है पर कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं आता जो आइने को पारदर्शी कर सके। वो तस्वीरें ही हैं जो आइने में ढले वक़्त के बाहर भी मंजर दिखाती है।
hello aap ka dekhne ka najariya bahot komal or molayam hai. ranjna ji aap dekhiye ki or kya kya aap ko hum dekha rahe hai aap ki behcaini ko samajhna hi humari chahat hai.
2 comments:
Waah ! bahut dino baad bahuroopiye ko dekha...bachpan me aksar dekha karte the...kitna maza aata tha..
hello
aap ka dekhne ka najariya bahot komal or molayam hai.
ranjna ji aap dekhiye ki or kya kya aap ko hum dekha rahe hai aap ki behcaini ko samajhna hi humari chahat hai.
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