Tuesday, December 16, 2008

ये सब तेरे लिए है

ढूँढ़ता-फिरता चल उस निशाँ को जो तेरे लिए हैं।
उन बसेरों की पनाहों मे रूक जा, जो तेरे लिए हैं।
फिर से खिल जाए वो कहानियाँ, वो यादें और निशाँ,
कुछ ऐसे नयेपन से दोहराता चल, उन लम्हों को जो तेरे लिए हैं।
न कर अभी चाँद, तारे तोड़ने की बातें, ये ज़मी अभी तेरे लिए हैं।

जाने कब खो जाए तू इस शहर मे बनकर काफ़िर होकर,
अन्जान जगह बने ये पेशबन्द इशारे तेरे लिए हैं।
कहीं इबारत, कहीं पर्चे, कहीं तख़्तियाँ तेरे लिए हैं।
कहीं खुले गटरो के ढक्कन, कहीं खुदे गढ्ढे तेरे लिए हैं।
कहीं ऊंचे बोर्ड लगे हैं तो कहीं बिजली के खम्बों पर बैनर।
इनमे दर्ज़ इश्तेहार और एडवर्टाइस्मेंट तेरे लिए हैं।

कई सुविधाएं, कई सेवाएं तेरे लिए हैं।
तू इस शहर में कदम तो रख, यहाँ की सब अफवाहें तेरे लिए हैं।
जब थक जाए तू , न मिले आसरा कहीं,
तो ये सड़को के फुटपाथ और खुला आसमान तेरे लिए हैं।

ओढ़ लेना तू इसे चादर समझ कर रात में जलते खम्बों की रोशनियाँ तेरे लिए हैं।
जहाँ चीखना-चिल्लाना भी गाना लगता है, ये सभी डिस्को क्लब तेरे लिए हैं।
जहाँ हर शख़्स मुखौटे पहने नाटक करता है, वो रंगमंच भी तेरे लिए हैं।
जहाँ सूरज चढ़ते ही सुबह होती और शाम की परछाइयाँ तेरे लिए हैं।

यहाँ इस भीड़ में क्या हो जाए, तेरे साथ कुछ पता नहीं,
जब भटक जाए कहीं रास्ता, तो कह देना हर शख़्स तैयार घुमाने के लिए हैं।

राकेश

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