Thursday, October 23, 2008

पोस्टर पॉलिटिक्स

दक्षिण पुरी की खाली दीवारों पर कई रंगीन पोस्टर चिपक गए हैं। एक के साथ मे दूसरा और कहीं पर तो जनता पार्टी के साथ मे जन शक्ति पार्टी के पोस्टर चिपके हैं तो कहीं पर बीजेपी के साथ कांग्रेस के पोस्टर। वाह! क्या एकता है?

किन्ही मे दशहरे की शुभकामनायें हैं तो कहीं पर बालमिकी जयंती की हार्दिक शुभकामनायें। दक्षिण पुरी की दीवारों पर कभी बहुत छोटे-छोटे पोस्टर व पर्चे छपा करते थे मगर आजकल तो जैसे सारा ध्यान इन्ही पोस्टरों पर लगाया जाता हैं। जिसका जितना बड़ा पोस्टर उसका उतना बड़ा नाम। एक हूक सी महसूस होती है सभी मे। लगता है जैसे किसी दौड़ मे है सबके सब। इस बीच दक्षिण पुरी के कुछ लोग बहुत बड़-चड़ करके मजा व नफा लुटते हैं। इन लोगों कि यहां पर भरमार है।

शायद ही कोई दीवार इनकी नज़रों से बची होगी। नहीं तो हर जगह पर ये नज़र आते हैं। बड़े-बड़े 12 व 13 फुट के पोस्टर और कई रंग वाले। सब से बड़ी बात इनमे एक और लगती है। जो भी पोस्टर लगाया या बनया गया है उसमे किसी कार्यकर्ता के बोल सुनाई देते हैं। किसी मे लिखा होता है रमेश जी के सहयोग से तो कहीं पर लिखा होता है अजीत भाई जी की तरफ़ से सबको ईद मुबारक। कोई भी त्यौहार हो या किसी भी किस्म का कोई पर्व इनकी निगाह से बचता नहीं। आजकल तो मुबारकों के पोस्टरों मे एक और पोस्टर नज़र आता है जो किसी नेता जी के जन्मदिन की खुशी मे बनवाया जाता है और उसे उनके आने-जाने के रास्ते मे लगवा दिया जाता है।

ये दुनिया है पोस्टरों की, जिसमे अब कुछ ही दिनों के बाद मे हम सभी लोग आने वाले हैं और शर्त रख लिजियेगा हमें पता भी नहीं चलेगा। बस, हमें कोई बड़ा या छोटा भाई कहकर अपने पोस्टर मे शामिल कर लेगा।


ऐसे ही एक नेता जी ने गली मे कदम रखा। गली सिवर के पानी से बिलकुल फुल हो चुकी थी। पूरी गली मे ऐसी बदबू थी के सभी गली वाले अपने-अपने घरों मे फ्लीट मारकर बैठे थे। कोई होम फ्रैश्नर मार आराम से बैठा था। किसी के घर के सामने कुछ ज़्यादा ही पानी भरा हुआ था तो वो किसी ना किसी तरह से पानी निकलाने की कोशिस कर रहा था लेकिन कर भी क्या सकता था। बस, देख रहा था कि पानी का निकास कहां से है?

नेता जी ने जैसे ही गली मे कदम रखा तो उनकी भी नाक मे बदबू आई मगर नेता जी नाक बन्द तो नहीं कर सकते थे। क्योंकि फिर पब्लिक पर असर सही से नहीं पड़ेगा। अगर नेता ही लोगों की परेशानी को बिना समझे नाक पर रूमाल रख ले तो वो नेता किस काम का। तो अब नेता जी को बिना आना-कानी किए वो बदबू सूंघनी थी और वो बहुत ही ईमानदारी से उस बदबू मे दाखिल होते गए। उसके साथ-साथ उनके दिमाग मे एक पोइन्ट ये भी था की इससे अच्छा मौका कोई और नहीं होगा ये जताने का कि देखो तुमने जिसको वोट दिया या जो तुम्हारा नेता है वो आराम से बैठा है और आप लोग यहां बदबू मे बैठे हो। ये जताते हुए उन्होनें अपने आने का फायदा उठाते हुए ये बोलना शुरू किया, मगर क्या करें बोहनी ही खराब थी।

गली के सबसे बुर्ज़ुग शख़्स जिन्हे किसी की आवाज सुनाई कम देती है वो इन नेता जी से भिड़ गए। नेता जी ने अपनी ईमानदारी दिखाते हुए वही कहा जो हर नया नेता बनने वाला शख़्स कहता है कि आप लोगों की परेशानी वही समझ सकता है जो आप लोगों के बीच का हो और आप लोगों की ही तरह से जीता हो? हमें मौका दिजिये एक बार अपनी सेवा का। हम आपकी ही तरह हैं।

इतना कहना था की अंकल जी भिड़ गए। "अरे सुसरे एक जैसे होते हैं, आज तो तुम भी आ गए, तबसे कहां थे? अगर परेशानी समझनी है तो पहले लोगों के बीच मे जाकर उनसे पुछते की आखिर मे बताओ किस-किस चीज की दिक्कते हैं? साला यहां सीधा चले आए मदद मांगने को। यहां सवेरे से ना जाने कितने आए हैं मगर किसी को पुछो की क्या पता है कि यहां इस गली मे कितने दिनो से पानी कड़वा आ रहा है? तो साले किसी को पता नहीं है बस, सेवा करवा लो इनसे। अरे क्या सेवा करोगे तुम? यहां साला एक महिना हो गया सिवर को भरे हुए, कम्पलेन्ट करके आते हैं तो सरकारी नौकरी करने वालो को भी अपनी तरफ़ से 20 रुपये देना पड़ता है। क्या उन्हे तन्ख्या नहीं मिलती? सब के सब खाने वाले लोग हैं? भईया हमें हमारे हाल पर छोड़ दो।"

नेता जी ने बड़े ध्यान और उदारता से उनकी पूरी बात को सुना और बदले मे सिर्फ़ इतना कहा, "बाबू जी अगर मेरे साथ भी ऐसा होता तो मैं भी इसी तरह बिगड़ता। मगर, हमें ये खुद से समझना है कि आखिर मे गलती किसी कि है?”

ये कहकर नेता जी अगले घर के सामने गए। वहां एक नौजवान बन्दा खड़ा था। नेता जी ने वहां उसके पास मे जाकर उसके कांधो पर हाथ रखते हुए कहा, “ये हैं हमारे नौजवान भाई, कल की उड़ान। ये समझ सकते हैं हमें। जो बीत गया है वो क्या समझेगा। ये समझेगें, क्योंकि अभी इनको की आने वाले कल की नींव रखनी है।"

पीछे से उनके कार्यकर्ता भी साथ की साथ हां मे हां भरते रहें। ऐसा कहते जैसे- जो भी कह रहे हैं वो सब कुछ भला है और अच्छा है। नेता जी ने फिर से कहा, “देखो भाई ये हमारी नई और कल की उम्मीद मे बनी ये पार्टी है, इसे दक्षिण पुरी के नौजवान भाईयों ने बनाया है। जे, के, एल, बी अथवा सी ब्लाक के नौजवान भाईयों ने। अपने लिए और सबके लिए। हम चाहते हैं कि एक ऐसी पार्टी बनाई जाए जो एक-दूसरे को सुने और उसकी दिक्कतों को समझें। क्यों? ये होना जरूरी है। मैं आपको एक चीज दिखाता हूँ।"

उन्होनें अपने कार्यकर्ता के हाथों मे रखे पर्चों मे से एक पर्चा लिया और दिखाया, उसमे सबसे ऊपर उनका फोटो था एक तरफ़ मे और बाकी नीचे की तरफ़ मे कई फोटो थे। लगभग दस लोगों की तस्वीरें थी। सभी यहीं दक्षिण पुरी के ही चेहरे थे। नामी-ग्रिरामी लोग। जो किसी ना किसी वज़ह से दक्षिण पुरी मे सुर्खियों मे रहे हैं। पूरा पोस्टर लोगों से भरा हुआ था। ये भी एक खेल ही है, ये दिखाने का की इस पार्टी के सहयोग मे कितने लोग हैं? इस पार्टी पर विश्वास किया जा सकता है। आजकल एक इसकी भी हूक सी लगी है कि हर पार्टी के पोस्टर मे उस जगह के कई लोगों के चेहरे नज़र आने चाहियें।

नेताजी ने अपनी बात को रखते हुए कहा, “हम कल शाम मे 5 बजे, शीश महल मे एक बातचीत रख रहे हैं जिसमे दक्षिण पुरी के कई नौजवान भाई आयेगें। जो अपनी जगह को कल को एक नये रंग मे देखना चाहते हैं तो आप भी आइयें। हम आपको न्यौता देते हैं। ये रहा हमारा कार्ड।"

इतना कहकर नेता जी अपने रास्ते चल दिए। दक्षिण पुरी मे अक्सर ऐसी सभाये बनती आई हैं। जिनमे लोग बहुत तरीके जुड़े हैं। जिस सभा मे लोग वो होते हैं जिनका परिचय अपने आसपास मे लोगों से बनता है। जिनको गुरु या मस्तकलन्दर कहा जाता है वो इस सभा के सबसे टॉप के बल्लेबाज़ होते हैं। शाम के साढ़े चार बज चुके हैं। शीश महल मे सभा बैठने ही वाली है। लगता है जैसे नेता जी ने कई लोगों को न्यौता दिया है। छोटा सा कमरा है ये और लोगों से भरा हुआ हैं। सभी एक-दूसरे को जानते हैं। नेता जी तो अभी आए नहीं है मगर उनके कार्यकर्ताओ ने बैठने और पानी पीने का इन्तजाम कर रखा है। कार्यवाही शुरू होने ने बस, कुछ ही समय की देरी होगी। नेता जी के आने की ही बाट सब देख रहे हैं।

"और सुनाईये राज साहब कैसी चल रही है आपकी समाज सेवा?”

"कहां यार, सब श्याने हो गए हैं। सबको लगता है जैसे हम उनका पैसा खा रहे हैं? बताओ यार एक पार्क की मरम्मत करवाई है अभी साला, दो हजार रुपये तो मेरे अपनी जैब से लग गए। फिर भी लोग आते ही नहीं है कुछ सहयोग देने। तुम बताओ समीति मे लोग आने शुरू हुए?”

"मैंने तो अपने भाईबन्ध लगा दिए हैं। लगभग 20 लड़के हैं जो अपने दोस्तो का कार्ड बना रहे हैं। ऐसे ही समीति बनेगी।"

"समीति तो पहले बनती थी। एक बार कहो बस, लोग चले आते थे। कहने वाला एक होता था और सुनने वाले कई मगर अब तो सारे कहने वाले ही हैं। सभी नेता बनकर घूमते हैं। किसी को भी पकड़कर पुछलो, एक-एक आदमी सौ-सौ लोगों को लेकर चलता है।"

कई लोग तो खाली चुपचाप बैठे ये देख रहे थे कि हमें क्यों बुलाया है? ना तो हम समाज सेवा करते हैं और ना ही हमारी कोई समीति है। बस, आ गए हैं नेता जी के बुलाने पर। अरविन्द जी यही सोच-सोचकर पूरे कमरे मे नज़र घुमा रहे थे। एक तरफ़ की दीवार मे तो नेताजी के ही पोस्टर चिपके थे और बाकि कि दीवारें खाली और सूनी पड़ी थी। शायद, यहां पर अभी बहुत कुछ आना बाकी है। नौकरी छुट जाने के बाद मे इनका पूरा दिन लोगों के बीच मे गुजरता। बरात घर मे बैठे-बैठे। तो वहां के कई लोगों के साथ मे जान-पहचाह हो गई। बरात घर को साफ़ रखने मे बहुत ध्यान देते हैं इसके जरिये इनको कम से कम चाय तो मिल ही जाती। अब तो गली व इनके जानने वालो को बरात घर बुक करवाना हो तो वो इनके ही पास मे चले आते। ये सोच कर कि ग्रीन पार्क नहीं जाना पड़ेगा अरविन्द जी खूद ही करवा देगें। ये काम करवाने के उनको कुछ नहीं मिलता बस, न्यौता और पहचान मिल जाती। ये बहुत है उनके लिए।

नेता जी ने कमरे मे कदम रखा। सबको सलाम करते हुए वो अपनी कुर्सी पर बैठ गए। आते ही कहने लगे, “मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ आप सभी का आपने मेरे कहने पर अपने दिन मे मेरे लिए वक़्त निकाला। अरे राजकुमार, सबको चाय पानी पिलाया क्या? जाओ सामने चाय वाले को बोलो कि दस चाय भेजे। मैं बस, यही कहना चाहता हूँ की हम एक पार्टी शुरू करने वाले हैं जो आप सबके सहयोग की प्यासी है। हम ये नहीं चाहते कि आप लोग अपने काम मे कोई खलल डालें। हम तो ये चाहते हैं कि आप बस, हमारे साथ खड़े रहे। फिर जैसा आप सभी चाहेंगे वैसा ही होगा। ये पार्टी आपकी है और आपके ही इलाके मे नई तरह की योज़नाए और काम के लिए बनी है। हमारा प्लान जो होगा वो आपके ही आगे रखा जायेगा। अगर आप लोग ये कह दे की आप हमारे साथ हैं तो हम काम शुरू करते हैं। अभी तक हमारे साथ मे 300 लोग जुड़ चुके हैं। जो दक्षिण पुरी के हैं। हम चाहते हैं कि आप लोग भी हमारे साथ मे जुड़े।"

नेता जी ने अच्छी ख़ासी पट्टी लोगों को पढ़ा दी थी। मगर लोग भी कम नहीं हैं अपने-अपने काम मे माहिर हैं। इनको शीसे मे उतारना किसी नौसिख़या आदमी का काम नहीं है। हर आदमी, अपने साथ मे तीन सौ-तीन सौ लोग लेकर चलता है। चाहें तो अपनी पार्टी खुद से बनाले। मगर बस, चाहता नहीं है। इतने मे चाय की प्याली नेताजी ने सबके आगे खिसकाते हुए कहा, “हम आपको घुमायेगें नहीं बस, आप कह दो कि आप हमारे साथ हैं।"

सभी लोगों ने चाय का घूंट मारते हुए कहा, “ठीक है सर आप इतना कह रहे हैं तो ठीक है। हम तो ये चाहते हैं कि हमारे जरिये कोई अच्छा काम हो जाए।"

इतना ही बहुत था नेता जी के लिए। "शुक्ररिया हम आपका फोटो अपने नये बन रहे पोस्टर मे छपवायेगें चलेगा ना?”

"चल तो जायेगा, लेकिन हमारा फोटो तो पहले भी कई पोस्टरो मे छप चुका है।"

"तो कोई बात नहीं जी, ये तो भागीदारी है। हर समीति मे आपका सहयोग है इसका मतलब। किसी मे ज़्यादा, किसी मे कम। बस, अबसे आप ये कह देना की हमारे साथ ज़्यादा है।"

एक लम्बी हंसी के साथ मे सभा बर्ख़ास्त हुई। सड़को के किनारे लगने वाले पोस्टर और पार्टियाँ कितने समूह बनाकर चलती है। कई पोस्टरों मे दिखने वाले लोग "दल बदलू" के नाम से जाने जाते हैं, मगर यहां पर तो ये भागीदारी की शक़्ल लिए हैं और शहर मे ये समीति का संगठन के रूप मे नज़र आती है। क्या आप भी सौ लोगो को जानते हैं? तो आप भी अपनी समीति बना सकते हैं या फिर किसी समीति मे भागीदारी दे सकते हैं। इससे आपको जानने वाले और पुछने वाले लोगों मे इज़ाफा होगा। लोग आपके इन्तजार मे बैठे रहेगें। मान-सम्मान होगा। बस, आने ही वाला है आपका नाम किसी नये बनने वाले पोस्टरो में। मुबारक हो, मुबारक हो।

लख्मी

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