मैंने कुछ सवालों के गहरे और अपने जीवन मे झांकते हुए ये सवाल सोचे है, जो मैं आपके साथ मे जीवन की गहराई मे उतरने के लिए बांटना चाहता हूँ। देखा जाए, तो मुझे दो रातें लगी ये सोचने मे की लोग अपने जीवन के सवालो को अपने तक ही समेटकर क्यों चलते हैं और उन लोगों मे मैं क्यों हूँ? आज बहुत सालो के बाद मे मुझे अच्छा महसूस हुआ के अभी के सभी जवाबो और सवालो पर बारीक समझ जानकर, थोड़ा इन्हे और पढ़ना चाहता हूँ ताकि मैं भी समाज मे बाकि लोगों कि तरह जवाबों को तलाशता हुआ, खाम-खां मे ना भटकूं।
> निरंतर बदलाव के बाहर हमारे साथ क्या जुड़ा है?
> अलग समय के (द्वष्टी कोण ) को हम कहां-कहां लेकर जीते हैं?
> हमारे नज़रिये और समाज के नज़रिये के बीच मे कैसा मेल है?
> समाज की छवी मे हम और आप शामिल है या नहीं?
> वास्तविक ज़िन्दगी से क्या बहस कर रहे हैं?
> अपने से दूर है कुछ, इस दूरी को चिन्हित कैसे कर रहे हैं?
> हमारी अपनी कल्पना दूसरों से विपरित कैसे है?
> स्वीकार करना, इसकी पकड़ है जीवन पर?
> हम किसी अलग शख़्स पर जाहिर कैसे होते हैं?
> हमने समाज को बर्दाश्त कैसे किया?
> कौन सी धारणायें लेकर हम जी रहे हैं?
> आप के अपने समाज से आपकी क्या नई कल्पना है ? या होती कैसे है?
> समाज के अलग ढ़ाचों में कैसे जीते हैं?
> क्या कोई ऐसी न समझ आने वाली स्थिती होती है?
> हम अपने से, दूसरो को विरोद में कैसे कल्पना करते हैं?
> किसी के विरूद्ध कल्पना क्या अलग खोलती है?
> जगह-जगह किन अवधारणाओं से हम टकराते हैं?
> दूसरो के बने कौन-कौन से विभाजन से हम हर वक़्त झुजते हैं?
> किसी जगह में दखिल होने से पहले क्या बैचेनी होती है?
> अगर कोई कल्पना दिमाग मे बनी है तो वो किसके लिए है?, उस कल्पना मे कितने लोग हैं?
> किसी ख़ास स्थिरता से टकराए हो? तब क्या हुआ है?
> जब हम अपने जीवन के रुके हुए फैसलों में जाते हैं तो क्या होता है?
> रुके हुए मे दाखिल होकर क्या परिवर्तन ला पाते हैं हम?
> मान लो, अंनत तरीके हैं आप के पास लेकिन किसके साथ ख़ास तरह से जीते हैं उन तरीको में?
> पहचान के साथ हमारी क्या टेन्शन व लड़ाई रहती है?
> पहचान को न पहचानने की टेन्शन क्या है?
> गुजरे समय के बाद से हमारी भविष्य की कल्पना क्या है?
> ख़ास होने मे और ख़ास बनने मे अंतर क्या है? घर की चीजों का बनना कैसा है?
> क्या अपनाया और क्या लिया है, किसी से?
> क्या पाकर रज़ामन्द हुए?
> क्या पाने की चाहत रही?
इस दौरान कई लोगों से मिले, जिनके जीवन के सवालों ने कई जीवन की अधूरी व पक्की पहचानों को कसोटा है। ये मानकर चलना कभी तय नहीं होता कि जो हम दिन के बितते समय मे नज़र आ रहे हैं उसका प्रभाव हमारे चारों तरफ भी है, शायद नहीं। तभी तो खाली हमें व हमारे काम को देखने के तरीके बना लिए गए हैं। तो फिर हमने क्या बनाया? जीवन के कुछ सवाल है जो हम अपने मे ऐसे संभाल कर चलते हैं जैसे कि वे खाली मेरी ही ज़िन्दगी से जुड़े हैं बाकि लोगों के सवाल दूसरे हैं, मगर शायद ऐसा नहीं हैं। ये वे सवाल हैं जो लोग कहते हैं, दबाते हैं, छुपाते हैं लेकिन कभी पुछते नहीं है तो क्या पुछने वाले सवाल कोई दूसरे है या कुछ और हैं? हम अपनी आपबिती को अपना कौना मानते हैं और उसे अपने अतित की ताकत बना लेते हैं जो हमें भविष्य की तरफ़ मे ताकतवर बनाकर धकेलती है तो उसमे उपजने वाले सवाल क्या है? या किसके लिए हैं?
यही लोगों के साथ मे मैं समझने कि कोशिस कर रहा हूँ।
राकेश
No comments:
Post a Comment