Saturday, October 4, 2008

गली मे वो सब

गलियों में हर तरह के ऑहदे वाले और पैशेवर लोग रह रहे हैं। इनका अन्दाजा आप गली के साथ जुड़ने वाले शख़्सों की किसी न किसी पहचान से साफ़ पता लगा सकते हैं। मौहल्लो की गलियों की अपनी-अपनी एक ख़ास पहचान रही है। जिसका नामकरण कर के लोग अपनी ज़िन्दगी के पहलुओ से परिचित करते हैं ।

गली बड़ी ही दिलचश्प जगह है। जो न अपना कोना है और न अपना घर इस से अलग है। हमारे अन्दर का और बाहर का दोनों का संतुलन बनाने की जगह है। जैसे की गलियों को याद करने के लिए उन्हे चिन्हित की गई पहचान पर नज़र डालना जरूरी है।
गलियां हमे बनने और उजड़ने के दौर की समझ लेकर लय बना कर चलने की समझ देती है। तभी इन गलियों को कई तरह से नामकिंत किया जाता है।

हमे गलियां जीवन के उतार-चड़ावो से और वक़्त की काल-गुजारियों से अवगत कराती है। अपने साथ जुड़ने वाले नाम से गली का असली मतलब खुल के सामने आता है फिर कई चेहरे उजागर हो जाते हैं। हलवाई वाली गली, मार्किट की गली, कोने वाली गली, कोयले की टाल वाली गली, इंडियन जिम वाली गली, किन्नरों की गली, वैलडिंग वाली गली, मन्दिर वाली गली, सुनार वाली गली, कैमिस्ट वाली गली।

सभी तरह के लोग हैं जो गलियों और रास्तो से गुजरते हैं और एक नामोनिंशा पीछे छौड़ते हैं। उनसे ही वहां के रहने वालो का गहरा रिश्ता होता है। तभी वे वहां के रास्ते, कौनो, जगहों की पहचान बन जाते हैं। इसलिए नाम, पता या किसी शब्द के साथ जुड़ी गली का महत्व ही बड़ जाता है। लोगों को उन के गोत्र नाम से भी गलियों को बताया जाता है। आहुजा कि गली, बारे की गली, पवन की गली, शर्मा वाली गली। इस तरह से गलियों के सफ़र में हम जीते चले जाते हैं। जिस में कई रिश्ते, नाम जरूरतें जुड़ जाती हैं। गली एक तरह से न्यौतेगार जगह बन जाती हैं।
यहां का रास्ता बहुत छोटा है बहुत उबड़-खाबड़ है यहाँ, लम्बी और ऊंची-ऊंची दीवारें हैं जो हमेशा एक-दूसरे को ताकती रहती है। जिसमे से एक मन्दिर की दीवार है और दूसरी पुराने अखाड़े की मुढ़ेर है। इन दो दिवारों से होता हुआ रास्ता एक मार्किट के अंदर चला जाता है। दूसरी तरफ़ बाहर 17 ब्लॉक के बस स्टैंड की सड़क से जा मिलता है। यूं तो सब इस गली को एक बदनाम नाम से ही जानते हैं। जिस की वजह से प्रेम गली का नाम मुश्किल से ही लाते हैं। क्योंकि ये बदनाम गली यहाँ के लड़की-लड़को को इश्क करने की पनाह देती है। तो क्या गुनाह करती है। जबकी इश्क करने के लिए शहर मे सैकड़ो, पार्क, खंडर, झील और रैस्ट्रारेंट हैं मगर दक्षिण पुरी मे और कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ दुबका-चोरी से कोई लड़का-लड़की बात कर सकें। अगर सड़क या चौराहे पर लड़के-लड़कियां मिलते हैं तो उन्हे आने-जाने वाले लोग घूरते हैं। लेकिन गली मे उन्हे कहीं कोई घूरने वाला नहीं होता ।
क्योंकि इस गली की दिवारे काफी ऊँची उठी है और गली भी 20-25 मीटर लम्बी है।मार्किट के कौने पर एक मिठाई वाले रहते हैं। उनके बच्चे भी इतने बड़े हैं कि वो ये लड़के-लड़कियों का इस तरह मिलने का मतलब बखूबी जानती हैं। इसलिए दुकान वाले भाई साहब अपने मकान से जुड़ी प्रेम गली मे से जब कोई लड़का-लड़की मिलते देखते हैं तो उसे डांट कर भगा देते हैं।

ये वैसा ही लगता है जैसे कोई आम के बगीचे से आम तोड़ रहा हो और उसे कोई धमकाता हो। लेकिन यहाँ इस तरह चुपके से मिलना बंद नहीं होता। 10-12 सालों से इस गली मे यहीं के लड़के-लड़कियां बाते करने के लिए आते हैं। जब भी गली से कोई लड़की होकर निकलती है तो उसे बुलाने वाला लड़का दिवार की ऑट मे अपनी बात कह देता है।

गली से सटी मिठाई वाले की दुकान और ऊपर मकान दोनों ही गली की दिवार से मिले हुए हैं और उस दीवार मे एक खिड़की भी बनी हुई है। जिसमे से कोई यहाँ मिलने वालो को कभी-कभी देख लेते हैं और गुस्से से गालियाँ देते हैं। मिठाई वाले को इस बात का डर रहता है कि कहीं इस गली का माहौल उनके बच्चो पर हावी ना हो और उसका बुरा प्रभाव न पड़े इसलिए अपनी गली की दिवारों पर कोयले से गालियों का एक बहुत बड़ा चार्ट बना रखा है। टेढ़े-मेढ़े (अश्लील) अक्षरो मे लिखा है "रांड, दल्ले, कमीने के बच्चे , कुतिया आगे जा" फलाँ-फलाँ।
ये चार्ट अक्सर बदलता रहता है यानि गालियों मे बढ़ोतरी होती रहती है। कोयले से कार्टून भी बनते रहते हैं और डायलॉग भी।

लड़के और लड़की का कामुक (sexual) कार्टून भी बना होता है। उसके नीचे एक लाइन लिखी होती है "मेरी बहन तुम राखी के दिन क्यों नहीं आई" ये सवाल छूटा हुआ होता है। फिर दूसरें कओने पर हाथ का पंजा बना होता है। उसके नीचे लिखा होता है, "अरे भाई अपनी बहन को यहाँ से ले जा " मिठाई वाले भाई साहब इन लड़के-लड़कियों को टरकाने से बाज नहीं आते। दक्षिन पुरी मे रहने वाले लोग इस गली को 17 ब्लॉक के रोड तक जाने का शॉर्टकट मानते हैं तो दूसरी तरफ़ नौजवानों के लिए यह जगह हाथ पसारे इंतजार में रहती है।
मगर इस गली की दिवारें पर लिखी व बनी गालियाँ और कार्टून जितने भी बनते रहें हैं फिर भी इस जगह मिलना बंद नहीं होता।

राकेश

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