ज़िन्दगी की रफ़्तार में हमारे साथ चलता-फिरता ये रोज़मर्रा, जो दिन को कभी हसीन तो कभी संजीदा बना देता है। इसमें गिरते-उभरते शख़्स, काम, शब्द और ख़्याल जीवन मे नए आसार की तरह से पनपते हैं। इस में कहीं आने-जाने लिए खुले रास्ते हैं तो कहीं किसी माहौल पर शोर गुल का दबदबा, गलियों में कहीं महकती हवाओं का खुलापन हैं तो कहीं बाहर किसी जगह चिलचिलाती धूप की गर्माई, कहीं बिना बुलाए ही सर्दी-गर्मी बारिश टपक पड़ती है। सड़कों पर बोलियाँ मारते फेरीवाले वक़्त-बे-वक़्त अपना धन्धा जमाए कशमकश मे जीते हैं।
ऐसा कभी भी देखा जा सकता है। कश्मीरी गेट पर, जो दिल्ली का एक प्रसिद्ध अन्तराष्टीये बस अड्डा है। यहाँ से शहरों के बाहर जाने के लिए बसे मिलती हैं। दिन हो या रात कश्मीरी गेट पर आवाज़ों का एक बड़ा समूह हमेशा तैयार रहता है आपका अभिनंदन करने के लिए। इसमें छोटे-छोटे झुंडो से निकलती, गूंजती आवाजों को सुनो, ऐसा लगता है कि हर वक़्त कोई किसी को सुनता होगा। सब अपने-अपने मतलब से ही मुख़ातिब होकर सोचते होगें। बस अड्डे के अन्दर आते ही 'आप का स्वागत है, आपकी यात्रा मंगलमय हो और फिर जाते वक़्त भी धन्यवाद किया जाता है।
ये तो हुआ आप की ख़ातिरदारी का सिलसिला जो शहर में आप के आगमन में आपको कुछ रोक थाम वाले आचार-विचार भी नज़र आयेंगे। जो हर वक़्त आपको ताकते रहते हैं। आपकी नज़र उन तक जाये या ना जाये मगर कोई है जो आपको लगातार देख रहा है। उसकी आँखो से आप बच नहीं सकते।
'कृप्या पायदान पर यात्रा न करें'
आप शहरों मे इस नकारत्मक लाईन को जगह-जगह देख सकते हैं। इसे आप बसों के गेट के दरवाज़ों पर देख सकते हैं और ऐसा कुछ 75 फिसदी आप को दुकानों, सरकारी महकमों सड़कों आदि में ज़्यादातर दिखेगी। ये नकारत्मक
'उचक्का'
शब्द आप को कई प्रकार मे मिल सकता है। हमारी सड़कों पर चलती बस, ट्रक, टेम्पों अथवा जगह को ये आदेश लागू है।
'हॉर्न वर्जित है'
धीमी और तेज़ रफ़्तार के लिए गाड़ियों के ड्राईवर अपनी लाईन में निती लिए, ट्रेफिक के नियमों का...कहीं पालन करते हैं और कहीं नहीं। एक महाशय ड्राईवर से मैंने पूछा, "आप कब से गाड़ी चला रहे हो?”
ड्राईवर बोला, ”दस साल हो गए।"
"अच्छा इन दस सालों मे आपने कितने सिंगनल तोड़े?”
ड्राईवर ने कहा, "आपको बताऊंगा तो आप चलान काट दोगे?”
“खैर, आप गाड़ी चलाते वक़्त क्या-क्या ध्यान मे रखते हो?”
ड्राईवर ने कहा, "आप अपनी बराबर की सीटों कि तरफ़ उंगली करते हुए कहा कि सवारी कि ज़िम्मेदारी और बस चलाते वक़्त आस-पास कि गाड़ियाँ, सड़कों पर सिंगनल देते बॉर्ड और रेड लाईट पर अपने बीच का डिस्टेन्स।"
इससे ज़्यादा एक ड्राईवर से और क्या पूछा जा सकता है? लेकिन बात गतिरोदक हो या अपने लिए कोई और मना ही सोचिए ज़रा ... ये शब्द तो एक और रुप मे हमें मिल जाता है। जैसे, 'डॉक्टर की सलाह पर लपेट कर परहेज़ करें' ताकि ड्रॉक्टर कि दवाई की सुरक्षा कवच बना रहे हैं मसलन कोई न कोई व्यक़्ति इस परहेज़ नाम का शिकार होता ही है। चाहें, वो शराबी-कताबी या फिर कोई वाहन चालक क्यों न हो। ऐसे अनगिनत बार बस स्टेंड वगैरह के पास बने पान के खोके जहाँ पर आए किसी ऑफिस के कर्मचारियों रोग विकारों से हैलो करते हैं। इन ठियों को देखो जहाँ नशीले प्रदार्थ बे छूट मिलते हैं। लोग खड़े होकर या किसी दिवार से कंधा लगाए इनका सेवन करते हैं। जहाँ एक तरफ़ खाने-पीने कि आज़ादी है। वहीं दूसरी तरफ़ बॉर्ड पर लिखवा दिया जाता है और साथ की साथ टांग भी दिया जाता है। 'नशीली चीज़ों का सेवन हानिकारक है' पर कौन माने ये तो एक बकवास भरा जज़्बात है।
ये कहकर लोग हिमायती बन जाते हैं। शहर-गांव मे भारी मात्रा मे बीढ़ी-तंबाकू कि खरीद के लिए सुनहरे अक्षरों मे लिखा मिलेगा।
'28 वर्ष से कम उम्र के व्यक़्तियों को तंबाकू उत्पादकों कि बिक्री एक दंडनिय अपराध है।'
वैसे इस बात की गवाह दीवारें भी हैं। अपने अन्दर के अहसासों को लेकर जीती हैं और उनपर उद्देशों को लिख दिया जाता है। एक बार एक सड़क से सटी दीवार पर लिखा देखा था। 'नो पार्किंग' कुछ छण भर पहले वहाँ पर परिन्दा तक नहीं था। फिर कुछ छण बाद ही देखा उसी जगह के पास डीडीए फ्लैट बने हैं और फ्लैटों के ठीक सामने से सड़क निकल रही है। फ्लैटों से आगे जाकर एक टी क्रोस है और वहीं नजदीक ही एक पाँच फिट ऊचीं दीवार है। दीवार पर लोहे के सरिए लगे हैं और उस पर क्रीम कलर की हल्की सफेदी हुई है। उस पर बड़े अक्षरों मे लिखा है
'नो पार्किंग, यहाँ पर गाड़ी खड़ी करना सख़्त मना है।'
लेकिन, ये तो शहर है, जिसे पढ़ने का वक़्त कहाँ है? यहाँ से गाड़ियाँ आजा रही थी। दीवार की लैफ्ट साईड से मोटर बाईक सवार एक बन्दा मुड़ता हुआ दीवार की तरफ़ देखने लगा। उसने अपना हैलमेट उतारा और कमीज की बाजु को आगे, पीछे से झाड़कर आगे, पीछे और बांये देखा फिर अपनी गाड़ी मे चाबी मारने के बाद वो इधर-उधर देखता हुआ। अपने रास्ते हो लिया। शायद, कोई काम हो। कमाल है लिखने वाले ने लिख दिया 'नो पार्किंग' मगर उसे सोचने वाले ने क्या माना?
बरहाल, ऐसा मैंने एक और दीवार पर देखा, काफी पुरानी दिवार थी। जिसमे तरेड़ भी आ रही थी। बारिश मे भीगने से उस पर कहीं-कहीं हरे काले, धब्बे भी थे। देखने से लगता था की वो दीवार मरम्मत मांग रही है। उस दीवार के ऊपर के किनारों के नीचे ही लिखा था।
'पोस्टर लगाना मना है'
वैसे उस दीवार के बीचो-बीच बड़े-बड़े पोस्टर पहले से ही लगे थे और इस्टीगर भी। दीवार ने तो काफी मना किया होगा पोस्टर लगाने वाले को कि भाई मान जाओ, आपके ही जैसा एक जिम्मेदार शख़्स ये लिख गया है। पोस्टर लगाना मना है तो आप समझ क्यों नहीं रहे, पर पोस्टर चिपकाने वाले ने भी अपनी ड्यूटी निभानी है। उसने लेई से भरे एक कन्स्तर मे से भरकर लेई ली और पोस्टर पर लगाकर दीवार पर चिपका दिया, बाद मे उस चिपके हुए पर ऐसे हाथ फेरता जैसे दीवार की मालिश कर रहा हो। उसका हाथ पोस्टर के कागज़ पर मख़्खन की तरह से फिसलता। अब दीवार क्या करे कोई देखने वाला भी नहीं होता। ये काम तो रात के अंधेरे मे किया जाता है। जो दिन के उजाले मे आते-जाते लोगों की बतौर नज़र मे आ जाता है।
अक्सर ऐसा होता है कोई बड़ी बात नहीं, ये तो आम बात है। अगर कोई चीज किसी एक मक्सद के लिए बनती है तो निकालने वाले उसके दस मतलब निकाल लेते हैं। शख़्सों की चहल-कदमी के नीचे दबे-उठे रास्ते कहीं अच्छे खासे होते हैं तो कहीं उन्हे यूँ ही नज़र अन्दाज कर दिया जाता है। अब आप रास्तों की मान्यता और अमान्यता को ही ले तो 'ऐरियों' को अलग-अलग भागों मे बांट कर उन पर किसी टीन के बोर्ड पर लेवल लगाये जाते हैं। जो कुछ ख़ास प्रभाव डालते और छोड़ते हैं।
'ये आम रास्ता नही है'
जरा सोचिये ये शब्द किसे रोक रहे हैं? उन्हे जो इस लाईन को देखते हुए निकल जाते हैं उन्हे या फिर उन्हे जिन्हे जो महज़ वहाँ किसी काम के लिए रुकते हैं? अगर, ये पोस्टर आप के घर के दरवाजे पर लगा दिया जाए तो आप का रुख किस की तरफ़ होगा? शायद आप बौख़ला उठेगें। लेकिन, स्थानिये जगहों मे आप को निमन्त्रन देते शब्द भारी तादात मे मिल सकते हैं। देखा जाये तो शहर एक तरह से धीरे-धीरे अपार शब्द कोष का भण्डार बनता जा रहा है। आज कहाँ शब्दों की जरुरत नहीं? कुछ शब्द बस, और फिर दिनभर का आराम। ये आबादी के लिए एक सरल तरीका हो सकता है जहाँ लोग कम, चींजे ज़्यादा हो और जहाँ चींजे कम, लोग ज़्यादा हो। वहाँ कुछ मनाही करना उतना लाभप्रद नहीं होता जितना कामगार होता है। चीजों के बनते ही लोग उन्हे काम मे लेने के नुस्के अथवा तरीके सोच लेते हैं।
चलिए अब हमारी दिल्ली मे बने या बन रहे फ्लाई औवर जिन्हे हम हिन्दी मे 'सेतु' और आम भाषा मे 'पुल' कहते हैं। दिवारें बड़े-बड़े मजबूती सीमेन्ट और लोहे के उम्दा-सरियों से बने बिम को लाल, काले ,हरे, पीले रंगो से मार्ग दर्शक चिन्ह या मसुरियों के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। इन रास्तो, गली-कुचो, चौराहों पर किसी न किसी के सहारे घोषित की गई बातें फैलाकर अच्छा ख़ासा ढांचा सा बना जातें हैं और इस ढाँचे से निकले रास्तों पर भीन्न-भीन्न रूप नज़र आते हैं। जहाँ पर्मीशन होती है और नहीं भी तभी तो लिखा मिलता है। 'ये आम रास्ता नहीं है' किसी रास्ते मे बोर्ड आदी पर लिखा होता है। रास्ते आम हो या ख़ास, सबके लिए इन का अलग मतलब है। कोई कहता है सीधे जाकर बांये मुड़े और कोई कहता है बांये हाथ जा कर दांये मुड़ना। ऐसे ही ज्ञात कराते हैं। गाईड मैप जगहों को तलाशने मे मदद करते हैं लेकिन इन लोहे के बोर्डो पर बने मैप को भी लोग अपना ज़रिया बना लेते हैं। दिन-रात भागती-दौड़ती आबादी और ट्रफिक की घिचपिच शोर-गुल मचाता शहर हमेशा भूखा सा रहता है और चिल्लाता है।गाड़ियों की टीं... टीं... टाँ... भर्र..भर्र... गर्र... गर्र... सुनकर सब कुछ रुका सा लगता है लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं है।
राकेश
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